इस स्लोक को भी हमारा समाज भुला बैठा|आज नारी जाति के वस्तुस्थिति का आकलन किया जाय तो हम पाते है की स्थिति बद से बदतर की ओर अग्रसर हो चली है|ज़रा गौर फरमाए इन आकणो पर जो जनगड़ना २००१, राष्ट्रिय मानव विकास रपट २००१,एस आर एस मातृत्व मृत्यु अध्ययन २००६ के सर्वे में नतीजो के रूप में खुलकर एक भयावह कहानी खुद बया कर रहे है|
वही उत्तर प्रदेश में महिला और पुरुष के बीच साक्षरता का अंतर २७ प्रतिशत है इसके साथ ही घरेलू हिंसा और नारियो पर अत्याचार के न जाने कितने मामले हमारे और आपके बीच होते रहते है हर उन्सठ मिनट पर एक महिला का बलात्कार हो जाता है और दहेज़ हत्या के तो अनगिनत मामले है जो कई कारणों से समाज के सामने नहीं आ पाते घरेलू हिसा के लगभग ९० प्रतिशत मामले तो घर की कोठरी में कैद रह जाती है ज़रा सोचिये वह पीड़ित महिला कौन है?किसी की माँ किसी की बेटी किसी की बहन किसी की पत्नी का रूप होती है नारी धैर्य से भरी हुई त्याग की मूर्ती होती है नारी|एक लड़की जो तक़रीबन बीस साल तक किसी एक घर में अपनों के बीच में होती है और अचानक ही उसे किसी दूसरे घर ,दूसरे समाज,दूसरे परिवेश में भेज दिया जाता है और वो चुपचाप उस परिवेश को आत्मसात भी कर लेती है क्या पुरुष जाति एसा कर सकता है?शायद नहीं फिर भी उसे अधिकांसतह इन्हे इनका हक़ नहीं मिलता|
सरकार के द्वारा कई कानूनों को भी बनाया गया है लेकिन क्या कानून के डंडे के ही जोर से ही समाज इन्हे इनका हक़ दे सकता है यह सवाल सोचनीय है|ज़रुरत है तो केवल और केवल अपनी विकृत सोच को बदलने कीचाहे वह पुरुष हो या महिला जब तक अपनी सोच को अपनी नजरिये को नहीं बद्लेगे तब तक किसी भी कानून से नारी जाति का भला नहीं हो सकता और जब तक नारी जाति का भला नहीं हो सकता तब तक किसी देश किसी समाज का मज़बूत और सुव्यवस्थित रहना अधर में है|