किसान भारतीय जीवन शैली का एक अभिन्न अंग सबकी भूख मिटने वाला यह किसान आज भी सदियों से भूखे पेट सोने को मजबूर है कहने को तो सामन्तवाद का खात्मा हो गया है और देश में लोकतंत्र का बोलबाला है लेकिन इस लोकतंत्र में भी किसान की हालत आज भी बदतर है भारतीय कृषि आज भी रामभरोसे ही चल रहा है किसानो को खेतो में पानी के लिए आज भी लगान सिनेमा के पत्रों की तरह काले-काले मेघो का इंतजार रहता है बेशक हम बीसवी सदी में आ पहुचे है बेशक अमेरिकी थिंक टैंक का ये कहना की भारत अगली महाशक्ति है लेकिन इसी भारत के गरीब किसानो के लिए सरकार के पास बिजली नहीं है और बिजली ही नहीं कृषि से सम्बन्धित कोई भी कारगर योजना का अभाव दिखता है हाथी के दांत की तरह दिखावे के लिए सहकारी समितिया तो बना दी गयी है लेकिन उनसे मिलाने वाली सुविधाओ के लिए किसानो को सुविधा शुल्क का भी भुगतान करना पड़ जाता है
इतिहास गवाह है जिस किसी भी शासनकाल में खेती के लिए प्रोत्साहन दिया गया उस काल में राज्य अपने स्वर्णकाल में गिने जाते रहे है चाहे वो अकबर का वक्त रहा हो या फिर दक्षिण भारत के प्राचीन विजयनगर राज्य में राजा कृष्ण देव का शासन काल रहा हो जबकि हमारे निति नियंताओ ने तो इतिहास से सबक लेना ही बंद कर दिया है
बुंदेलखंड की बदहाली को सरकार भले ही भुला दे लेकिन जिसके बच्चे भूख से दम तोड़ दिए हो उनका घाव अभी तक भरा नहीं है 99 .8 %किसानो को 2009 में खरीफ की फसल पर नुकसान सहना पड़ा इनमे से 74 %किसानो को 50 से १००%तक का नुकसान उठाना पड़ा जबकि ३३%लोगो को कोई सहायता नहीं मिली एक समय था जब महोबा का पान इरान तक जाता था और आज महोबा में ही बाहर से पान मंगाया जाता है बुज़ुर्ग समाजसेवी वासुदेव चौरसिया का कहना है की यहाँ पिछले 6 वर्ष में पान की खेती 500 से घटाकर १०० एकड़ से भी कम रह गयी है जहा पहले 5000 परिवार इस पर निर्भर थे वही आज 50 की संख्या में सिमट चुके हैकभी चंदेलो के शौर्य ,छत्रसाल की वीरता और झासी की रानी के लिए मशहूर रहा बुंदेलखंड आज बर्बाद किसानी और सूखे के लिए मशहूर हो चला है सूखे की गंभीरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की एक सर्वेक्षण के अनुसार बुंदेलखंड में अधिकतर किसान दो हज़ार दस में अपनी खरीफ की फसल का लागत भी नहीं निकल पाए
दो हज़ार आठ में आई वाटर एड इण्डिया की एक रिपोर्ट के अनुसार यूपी सरकार बुंदेलखंड में लोगो को पिने के लिए पानी मुहैया करने और मिटटी के संरक्षण के लिए 2002 से 2007 तक के बीच 292 .50 करोड़ रुपये खर्च किये जबकि ठीक इसी अवधि में पिने के पानी का संकट भी बढ़ा है पानी न होने की वजह से पलायन करने का सिलसिला तेजी से बढ़ रहा है महोबा स्थित एक एन जी ओ "कृति शोध संस्थान"की एक टीम ने जब फरवरी दो हज़ार दस में जिले के आठ गावो का दौरा किया तो पाया की यहाँ के कुल 1668 परिवारों में से 1222 परिवार पलायन कर चुके है प्रकिती की मार और सरकारों की बेरूखी ने यहाँ किसानो को पलायनवादी बनाने पर मजबूर कर दिया है वे तभी अपने गाव लौटते है जब किसी की शादी हो या फिर बारिश की उम्मीद
भारत में अकेले इस प्रदेश की हालत को गौर करने के बाद पता चलता है की हमारा विकास दर कितनी तेजी से आगे जा रही जसा की सरकार का कहना है की हमने मंदी में भी बेहतर जी डी पी की दर बरक़रार रखी है लेकिन मूक सवाल यह है की क्या सच में भारत उदय हो रहा है? फ़िलहाल हम तो इसी गफलत में जी रहे है