सोमवार, 28 सितंबर 2009

दरिया - दुर्दशा

''जल ही जीवन है '' अपने आप में एक पूर्ण सत्य है यह वाक्य , नदियों के किनारों से ही जन्म हुआ मानव सभ्यता का चाहे वो सिन्धु नदी सभ्यता हो या नील नदी से अवतरित मिस्र की सभ्यता अथवा दजला फरातके किनारे जन्मी मेसोपोटामिया की सभ्यता ये सभी नदियों के किनारे ही पल्लवित और पोषित हुई मानव सभ्यता उत्तरोत्तर आगे ही बढ़ती गयी और पुरे विश्व में छा गई भारतवर्ष जिसे नदियों का देश भी कहाजाता हैप्रकृति ने यहाँ नदियों का जाल सा बिछा रखा है सदियों से भारतवंशियों ने नदियों को माँ के समान दर्जा दिया उसकी पूजा की गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों के साथ कितनी ही छोटी-छोटी नदिया देश भर में पानी की जरुरतो को पूरा करती हुई इस मानव सभ्यता जो अनवरत आगे बढ़ा रही है कितनी ही धार्मिक और एतिहासिक कथाये इन नदियों से जुड़ी है बालकृष्ण की नटखट लीला को तो केवल यमुना का किनारा ही बया कर सकता है और न जाने कितनी ही कथाये बिखरी पड़ी है इन खामोश नदियों केकिनारे ..........
''पतितपाविनी गंगा '' माना गया है की ये शिवजी की जटा से उत्त्पन्न हुई है जिन्हें भगीरथ ने अपनी कठिन तपस्या से इस धरती पर मानव कल्याण के उतारा था कथा चाहे जो भी रही हो लेकिन भारत की नदियों में एक श्रेष्ठ स्थान रखती है गंगा ऋषिकेश गंगा केमैदानी भाग का प्रवेश द्वार जहा से गंगा मैदानी भागो को हरा-भरा उपजाऊ करती चली आई है लगभग २५०० किमी लम्बी यह नदी अपने सफर में ७५ करोर टन मिटटी उठाती है गंगा का मैदान आबादी का सबसे घाना छेत्र माना जाता है गंगा के तट पर बसावट बहुत तेजी के साथ हुआ खासतौर से बनारस नगरी में लगभग १५ लाख से उपर कि आबादी का छेत्र है बनारस बनारस कि मस्ती बनारस का अल्हड़पन तो विख्यात है लेकिन इसके साथ जुड़ गया है एक स्याह पहलु भी जिस मोक्षदायिनी गंगा ने हमेसैकडो वर्षो से अपना प्यार अपना दुलार दिया बदले में हमने उसे क्या दिया गौर फरमाइए जरा इन आकडो पर जो केवल बनारस शहर के है सभी को मोक्ष प्रदान करने वाली पावन गंगा आज सीवेज के कारण८०%प्रदूषित हो चुकी है ८करोड़ लीटर मलबा सीधे घाटों के द्वारा नदी में पहुचता है १३०करोर लीटर सीवेज का कचरा प्रतिदिन हम इस मोक्षदायिनी को अर्पित करते है १५००० टन राख केवल श्यमसान घाटो के द्वारा इस नदी में जाता इसके साथ ही साथ श्रद्धालुओ का दबाव भी बहुत ज्यादा है रोजाना तक़रीबन ७००० लोग इस नदी में नहाते धोते है जबकि विशेष धार्मिक अवसरों पर इनकी संख्या तो लाखो में पहुच जाती है आज गंगा के पानी में बैक्टेरिया १०० एम्एल /६०००० प्वाएंत तक है सोचा जा सकता है क्या हाल कर दिया हमने अपनी मोक्षदायिनी का जो हमेशा से ही देती आई है एसा हाल केवल गंगा का ही नही अपितु लगभग सभी नदियों का हो चला है ६०% से अधिक डैम नदियों पर बनाये जा चुके है जिनकी संख्या लगभग ५०००० है सभ्यता के विकास का सीधा नाता रहाहै इन नदियों से और आज नही तो कल सभ्यता के विनाश का नाता होगा अगर हम न सुधरे ...........