रविवार, 4 अक्तूबर 2009

भारतीय रेल

एक तरफ टकटकी लगाये लोगो का हुजूम ,हर इंसान की जुबा पर एक ही चर्चा "अभी नही आई अब तक आ जाना चाहिए था "ज्यादा मत सोचिये ये लोग किसी मंत्री या अभिनेत्री की राह नही देख रहे बल्कि अपनी मंजिल की तरफ जाने वाली ट्रेनों के इंतजार में है नज़ारा है रेलवे स्टेशन का ,आवाम बदली सरकारे बदली लेकिन नही बदली तो केवल भारतीय रेल व्यवस्था कल मेरे मोबाईल पर एक मेसेज आया जिसमे मेरे मित्र ने एक सवाल किया था की दुनिया की सबसे लम्बी टायलेट कहा पर है ?सवाल पढ़कर मै सोचने लगा फ़िर मैंने उससे कहा भाई कुछ हिंट तो दो जवाब में बताया गया यह टायलेट हजारो किलोमीटर लंबा है सुनकर मै चकरा गया इतना लंबा टायलेट कही हो सकता है थकहार कर मैंने उससे कहा यार अब जवाब भी बता दो ये मेरी समझ के बाहर है तो उसने जवाब भेजा " भारतीय रेलवे ट्रेक "सुनकर हसी छुट गई लेकिन सोचिये क्या यह उत्तर ग़लत है दुनिया भर में दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क हमारा है पता नही कितनी ट्रेने प्रतिदिन चलती रहती है देस की आय का एक बहुत बड़ा जरिया है भारतीय रेलवे और हमें जानने समझने का पूरा हक़ है की हमारे इन पैसों का व्यय या सदुपयोग हमारी भले के लिए किस हद तक खर्च किया जाता है आज जबकि ट्रेनों का कम्पुतिरिकरण हो चला है अत्याधुनिक मशीने इस कार्य में लग चुकी है बावजूद इसके आज भी हमारे यहाँ ट्रेने नेताओ की तरह हमेसा लेट आती है और इनके कारणों में एक है रेलवे ट्रेको का सुचारू रूप से न होना बहुत सी ऐसी जगह जहा पर आज भी डबल ट्रेक की व्यवस्था नही हो पाई है (विधुतीकरण की बात ही छोडिए)साथ ही साथ प्रबंधन की दिक्कते भी शामिल है दुनिया में दूसरा सबसे ज्यादा कर्मचारियों वाला यह विभाग अपनी जिम्मेदारियों से हमेशी ही भागता रहा है सुरक्षा की अगर बात की जाय तो तस्वीर और भी बुरी नज़र आती है आयेदिन ट्रेनों में पड़ने वाली दकैतियाऔर जहरखुरानी की घटना तो आम बात हो चली है इसकी जिम्मेदारी न तो सरकार लेती है और न ही रेलवे अधिकारी सुरक्षाबलो की तो बात ही छोडिए ये महोदय तो केवल अपनी जेबे गर्म करने के चक्कर में लगे रहते है पकड़ा उन्हें जाता है जो बेकसूर होते है बात तो यहाँ तक सुनाई देती है की डकैतों और जहरखुरानों से रेलवे पुलिस की सठ्गठ भी होती एक निश्चित रकम या यो कहिये की लूट में एक हिस्सा इनके नाम चढाया जाता है अख़बार वालो की दया से खबरे यहाँ तक आई है की सुरक्षाबलो द्वारा भी लूट की घटना को अंजाम दिया गया है दो चार दिन हो हल्ला मचता है खबरनवीस अपने कलम की कुछ स्याही और कागजों के कुछ पन्ने काले करते है फ़िर सब कुछ सामान्य हो जाता है चोर ,उठैगिरो ,डकैतों और जहार्खुरानो का धंधा फ़िर से सुचारू रूप से चालू हो जाता है परेशां होता है तो सिर्फ़ आम आदमी जिसे जल्द से जल्द अपने मंजिल तक पहुचना होता है बात अगर परेशानियों या सरकार की शिकायतों की करे तो एक नही कई कागजों के ढेर लग जायेगे वैसे भी परेशानियों या बदहाली का रोना रोने से कुछ ठीक होने वाला भिया नही ,जरुरत है उन जवाबो को ढूढने की और उस पर अम्ल करने की नही बल्कि एक क्रांति करने की जिसे आप या हम सभी जानते है