शनिवार, 20 मार्च 2010

नारी

"यत्र नार्यस्त पूज्यते रमन्ते तत्र देवता" बहुत पहले ही यह बात कहकर भारतीय समाज ने नारी जाति को एक प्रतिष्ठित पद दे दिया था लेकिन जिस तरह से अन्य सामाजिक मान्यताये धूमिल होती चली गयी ठीक उसी तरह से
इस स्लोक को भी हमारा समाज भुला बैठा|आज नारी जाति के वस्तुस्थिति का आकलन किया जाय तो हम पाते है की स्थिति बद से बदतर की ओर अग्रसर   हो चली है|ज़रा गौर फरमाए इन आकणो पर जो जनगड़ना २००१, राष्ट्रिय मानव विकास रपट २००१,एस आर एस मातृत्व मृत्यु अध्ययन २००६ के सर्वे में नतीजो के रूप में खुलकर एक भयावह कहानी खुद बया कर रहे है|
       वही उत्तर प्रदेश में महिला और पुरुष के बीच साक्षरता का अंतर २७ प्रतिशत है इसके साथ ही घरेलू हिंसा और नारियो पर अत्याचार के न जाने कितने मामले हमारे और आपके बीच होते रहते है हर उन्सठ मिनट पर एक महिला का बलात्कार हो जाता है और दहेज़ हत्या के तो अनगिनत मामले है जो कई कारणों से समाज के सामने नहीं आ पाते घरेलू हिसा के लगभग ९० प्रतिशत मामले तो घर की कोठरी में कैद रह जाती है ज़रा सोचिये वह पीड़ित महिला कौन  है?किसी की  माँ किसी की  बेटी किसी की बहन किसी की पत्नी का रूप होती है नारी धैर्य से भरी हुई त्याग की मूर्ती होती है नारी|एक  लड़की जो तक़रीबन बीस साल तक किसी एक घर में अपनों के बीच में होती है और अचानक ही उसे किसी दूसरे घर ,दूसरे समाज,दूसरे परिवेश में भेज दिया जाता है और वो चुपचाप उस परिवेश को आत्मसात भी कर लेती है क्या पुरुष जाति एसा कर सकता है?शायद नहीं फिर भी उसे अधिकांसतह इन्हे इनका हक़ नहीं मिलता|
सरकार के द्वारा कई कानूनों को भी बनाया गया है लेकिन क्या कानून के डंडे के ही जोर से ही समाज इन्हे इनका हक़ दे सकता है यह सवाल सोचनीय है|ज़रुरत है तो केवल और केवल  अपनी विकृत सोच को बदलने कीचाहे वह पुरुष हो या महिला जब तक अपनी सोच को अपनी नजरिये को नहीं बद्लेगे तब तक किसी भी कानून से नारी जाति का भला नहीं हो सकता और जब तक नारी जाति का भला नहीं हो सकता तब तक किसी देश किसी समाज का मज़बूत और सुव्यवस्थित रहना अधर में है|   
    

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

तेरह फरवरी

 तेरह  फरवरी सन दो हजार दस ,यह कोई एतहासिक तारिख नहीं जिसका पता सबको हो लेकिन किसी परिवार के लिये यह एक न भूलने वाली काली तारिख है|आजमगढ़ के एक छोटे से गाँव परागद्दी के रहने वाले रामयश प्रजापति की बेटी सोंद्रिका देवी की शादी पाँच वर्ष पहले धर्मेन्द्र प्रजापति ग्राम जेहरा पिपरी में होती है शादी के कुछ दिन के बाद से ही उस मासूम का शोषण ससुरालवालों की तरफ से शुरू हो जाता है पाँच साल के लम्बे अन्तराल के बाद ठीक तेरह फरवरी को उसकी गला दबाकर न्रिशंश तरीके से हत्या कर दी जाती है और अपराधी पैसे की ताकत से समाज में छुट्टा घूमता है
यह किसी फिल्म की कहानी नहीं बल्कि एक ह्रदय विदारक सच्ची घटना है तमाम प्रयासों के बावजूद भी मृतका के सम्बन्धी न्याय की तलाश में इधर-उधर भटकने पर मजबूर है प्रशासन खामोश बैठा है किसी तरह दबाव डालने पर ऍफ़ आइ आर तो लिख ली जाती है लेकिन कारवाही के नाम पर सिफ़र ही हाथ में आता है और सबसे बड़ी बात तो यह है की समाज का चौथा स्तम्भ यानि की "मिडिया" भी इस मामले में अपनी चिर-परिचित फूर्ती दिखने में असमर्थ हो जाता है वह इंतजार कर रहा है की इस मुद्दे को कब भुनाया जाय|
ऐसी न जाने कितनी सोंद्रिका देवी को अचानक लाश में तब्दील कर दिया जाता है और हमारे कान में जू तक नहीं रेगती आखे तभी खुलती है जब इस तरह की कोई घटना हमारे ही साथ हो जाती है तब हम चिल्लाते है प्रशासन के खिलाफ,भ्रष्टाचार के खिलाफ,अत्याचार के खिलाफ और उन दुर्दांत हत्यारों के खिलाफ जो की एसा जघन्य अपराध करके भी समाज में हिंसक पशु की तरह घूम रहे होते है|
ऐसी ही न जाने कितनी सोंद्रिका दहेज़ की बलिवेदी पर कुर्बान कर दी जाती है और समाज खामोश रहता है अगली सोंद्रिका के मरने के इंतजार में आखिर कब तक ज़रा सोचिए .....................