गुरुवार, 26 नवंबर 2009

नक्सलबाड़ी

झारखण्ड के चेतरा जिले में एक सास्कृतिक कार्यक्रम के दौरान नक्सली हमला जिसमे नौ लोग हताहत हुए ,उड़ीसा के मयुरभंज जिले में फ़ुटबाल मैच के पुरस्कार वितरण के समय गोलिया दन्दनायी जिसमे तीन जाने चली गई चतरा के नवाडीह मिडिल स्कूल को बम से उड़ाया,इसरी में अजमेर शरीफ की जियारत में जा रहे बस में सवार जायरीनों पर प्राणघातक हमला जिसमे बारह लोग गंम्भीर रूप से घायल हुए और तो और छात्रधर महतो के रिहाई के लिये राजधानी एक्सप्रेस तक को अगवा कर लिया जाता है वह भी पूरे पांच घंटे तक ये तो महज़ फ़िल्म का ट्रेलर है आगे भी बहुत कुछ और है जो अक्सर खबरों में आता रहता है नक्सलबाड़ी गाव से उठी ये आवाज आज नक्सलपंथ का रूप अख्तियार कर चुकी है १९६७ में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाव के स्थानीय जमीदारों के खिलाफ जो युवाओ का चेहरा था आज वो अधिक विकृत नजर आता है उनकी हिसक गतिविधियों ने पूरे प्रशासन को चुनौती दी तब काग्रेसी नेता सिद्धार्थ शंकर राय मुख्यमंत्री थे नक्सलपंथ को ख़त्म करने का आदेश दिया गया जुलाई -अगस्त १९७१ में सेना के कोई ४०००० जवान तैनात किए गए धर पकड़ चालू हुआ और ४५ दिन की कवायद में ही सारा काम पूरा हो गया १९७२ में चारू मजुमदार को पकड़ा गया जिसकी मौत पुलिस हिरासत में हुई किसी भी राष्ट्र के लिए ये बहुत बड़ी शर्मिंदगी की बात होती है लेकिन भारतीय पुलिस का यह पराक्रम तो आदि से है प्रधानमंत्री ने पुलिस प्रमुखों के सम्मलेन में भी नक्सली हिंसा को बड़ी चुनौती बताया लेकिन केन्द्र तब से एक सूत भी आगे नही चली सिर्फ़ झारखण्ड में ही ३२९ से ज्यादा पुलिसकर्मी नक्सलपंथ की भेट चढ़ चुके है। झारखण्ड जहा २००३ में लगभग चार जिले नक्सली समस्या से ग्रस्त थे वही २००९ में दशा यह है की चौबीस में से बाईस जिलो में इनका वर्चस्व स्थापित हो चला है पश्चिम बंगाल ,बिहार ,आँध्रप्रदेश ,झारखण्ड ,महाराष्ट्र यूपी सहित बाईस राज्य नक्सलवाद के लाल सलाम के आगे नतमस्तक हो चले है अपरहड़,वसूली ,लेवी से प्राप्त धनो का आकड़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की आज नक्सलियों की कुल वार्षिक आय १५००० करोड़ रू है यानि की बिहार राज्य के वार्षिक आय से भी ज्यादा अपने मूल मकसद से भटक चली यह संस्था आज सरकार के गले की सबसे बड़ी फास बन चुकी है "माओ ने यह सीख थी थी की कोई भी क्रांति तब तक सफल नही हो सकती जब तक कम्युनिस्ट जनता के बीच उसी तरह से सहज रूप से नही घुल मिल पाते ,जैसे जल में मछली रहती हो जाहिर है बन्दूक के जोर पर एसा नही हो सकतादिमाग में कई यक्ष प्रश्न दौड़ रहे है नक्सलपंथ का मकसद क्या है क्या वे सरकार के सामानांतर अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते है या मजलूमों के हक़ की लड़ाई लड़ना ज़ाहिर है गरीबो के हक़ में लड़ने के लिए उनके साथ अपना खून पसीना एक करना होगा बजाय इसके की मासूम जनता का ही बेदर्दी से कत्ल कर दिया जाय वही दूसरी तरफ़ सवाल उठता है की क्या इनसे निपटने का सरकार का तरीका कितना सही था कोबाद गाँधी ,छात्रधर महतो को महज जेल भेज देने या गृहमंत्री महोदय के एलान करने से की नक्सलियों से सख्ती से निपटा जायगा इस समस्या का हल होता नही दिख रहा बार बार बुधिजिवियो के चेताने के बावजूद भी सरकार की योजना कभी इस पार तो कभी उस पार वाली नज़र आती है।शरीर का कोई अंग सड़ जायतो उसे काट कर फेका जा सकता है लेकिन जब दिल में ही नासूर हो तो उसका हल केवल इलाज ही है जरूरत है मर्ज को समझाने की और इलाज को इजाद करने का जो की भविष्य के गर्त में है।