बुधवार, 9 मार्च 2011

भूखा अन्नदाता

किसान भारतीय जीवन शैली का एक अभिन्न अंग सबकी भूख मिटने वाला यह किसान आज भी सदियों से भूखे पेट सोने को मजबूर है कहने को तो सामन्तवाद का खात्मा हो गया है और देश में लोकतंत्र का बोलबाला है लेकिन इस लोकतंत्र में भी किसान की हालत आज भी बदतर है भारतीय कृषि आज भी रामभरोसे ही चल रहा है किसानो को खेतो में पानी के लिए आज भी लगान सिनेमा के पत्रों की तरह काले-काले मेघो का इंतजार रहता है बेशक हम बीसवी सदी में आ पहुचे है बेशक अमेरिकी थिंक टैंक का ये कहना की भारत अगली महाशक्ति है लेकिन इसी भारत के गरीब किसानो के लिए सरकार के पास बिजली नहीं है और बिजली ही नहीं कृषि से सम्बन्धित कोई भी कारगर योजना का अभाव दिखता है हाथी के दांत की तरह दिखावे के लिए सहकारी समितिया तो बना दी गयी है लेकिन उनसे मिलाने वाली सुविधाओ के लिए किसानो  को सुविधा शुल्क का भी भुगतान करना पड़ जाता है
और केवल अगर उत्तर प्रदेश की बात करे तो यहाँ लगभग दो करोड़ बयालीस लाख दो हज़ार हेक्टेयर भूमि है जिनमे से बुवाई का रकबा एक करोड़ अडसठ लाख बारह हज़ार हेक्टेयर है जो कुल जमीन का 69.5  प्रतिसत है तक़रीबन राज्य के 53 प्रतिसत लोग किसान है और बीस फीसदी खेतिहर मजदूर  इस प्रदेश की अर्थव्यवस्था खेती पर आधारित है लेकिन चिंताजनक बात तो यह है यहाँ लगातार किसान खेती बाड़ी से अपना किनारा कर है जिसकी न तो सरकार को चिंता है न ही देश  के नेताओ को   आकड़े बताते है की सालाना लगभग 48000 हेक्टेयर खेती की ज़मीं कंकरीट के जंगलो में तब्दील होते चले जा रहे है जिसे सरकार विकास का माडल बताती है इस प्रदेश की सालाना आय 31.8 प्रतिसत खेती से आता है जबकि 1971 में यह 57 प्रतिसत ,1981 में 50 और 1991 में 41 प्रतिसत थी जाहिर है आकड़े किसानो के मनोदसा को ही बता रहे है की किस तरह से खेती उजडती चली जा रही है
इतिहास गवाह है जिस किसी भी शासनकाल में खेती के लिए प्रोत्साहन दिया गया उस काल में राज्य अपने स्वर्णकाल में गिने जाते रहे है चाहे वो अकबर का वक्त रहा हो या फिर दक्षिण भारत के प्राचीन विजयनगर राज्य में राजा कृष्ण देव का शासन काल रहा हो जबकि हमारे निति नियंताओ ने तो इतिहास से सबक लेना ही बंद कर दिया है
बुंदेलखंड की बदहाली को सरकार भले ही भुला दे लेकिन जिसके बच्चे भूख से दम तोड़ दिए हो उनका घाव अभी तक भरा नहीं है   99 .8  %किसानो को 2009  में खरीफ की फसल पर नुकसान सहना पड़ा इनमे से 74 %किसानो को 50  से १००%तक का नुकसान उठाना पड़ा जबकि ३३%लोगो को कोई सहायता नहीं मिली एक समय था जब महोबा का पान इरान तक जाता था और आज महोबा में ही बाहर से पान मंगाया जाता है बुज़ुर्ग समाजसेवी वासुदेव चौरसिया का कहना है की यहाँ पिछले 6  वर्ष में पान की खेती 500 से घटाकर १०० एकड़ से भी कम रह गयी है जहा पहले 5000 परिवार इस पर निर्भर थे वही आज 50  की संख्या में सिमट चुके है
कभी चंदेलो के शौर्य ,छत्रसाल की वीरता   और झासी की रानी के लिए मशहूर रहा बुंदेलखंड आज बर्बाद किसानी और सूखे के लिए मशहूर हो चला है सूखे की गंभीरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की एक सर्वेक्षण के अनुसार बुंदेलखंड में अधिकतर किसान दो हज़ार दस में अपनी खरीफ की फसल का लागत भी नहीं निकल पाए
दो हज़ार आठ में आई वाटर एड इण्डिया की एक रिपोर्ट के अनुसार यूपी सरकार बुंदेलखंड में लोगो को पिने के लिए पानी मुहैया करने और मिटटी के संरक्षण के लिए 2002  से 2007  तक के बीच 292 .50  करोड़ रुपये खर्च किये जबकि ठीक इसी अवधि में पिने के पानी का संकट भी बढ़ा है पानी न होने की वजह से पलायन करने का सिलसिला तेजी से बढ़ रहा है महोबा  स्थित एक एन जी ओ "कृति शोध संस्थान"की एक टीम ने जब फरवरी दो हज़ार दस में जिले के आठ गावो का दौरा किया तो पाया की यहाँ के कुल 1668  परिवारों में से 1222  परिवार पलायन कर चुके है प्रकिती की मार और सरकारों की बेरूखी ने यहाँ किसानो को पलायनवादी बनाने पर मजबूर कर दिया है वे तभी अपने गाव लौटते  है जब किसी की शादी हो या फिर बारिश की उम्मीद
भारत में अकेले इस प्रदेश की हालत को गौर करने के बाद पता चलता है की हमारा विकास दर कितनी तेजी से आगे जा रही जसा की सरकार का कहना है की हमने मंदी में भी बेहतर जी डी पी की दर बरक़रार रखी है लेकिन मूक सवाल यह है की क्या सच में भारत उदय हो रहा है? फ़िलहाल हम तो इसी गफलत में जी  रहे है