बुधवार, 28 मई 2014

आप के पाप

अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल नाम के ये सख्सियत जिसे कुछ  ही समय पहले कोई नहीं जानता था भ्र्ष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल के  लिए किये गए आंदोलन के बाद अन्ना हजारे के नाम की धूम मच गयी "मै अन्ना हूँ "की टोपियाँ लगाये जनता की भीड़ ने सरकार को चेतावनी दे दी कि अब बहुत हुआ भ्र्ष्टाचार  नेताओ संभल जाओ की जनता आती है ,लोगो को लगा कि अन्ना हजारे देश को एक अलग तस्वीर देंगे तभी केंद्र सरकार के सिपहसालारों ने एक दांव खेला और अन्ना जैसे दिगभ्रमित हो गए फलस्वरूप एक नए जननेता का उदय हुआ अरविन्द केजरीवाल   अन्ना हजारे नेपथ्य में चले गए आम आदमी का मसीहा आम लोगो के बीच का नेता जो बिना किसी सुरक्षा ,तामझाम और सादगी में लिपटा हुआ एक खांटी जननेता हाफ स्वेटर कान में मफलर लगाये मुझे स्वराज चाहिए का नारा लगाने वाला जनता का असली नायक चुनाव लड़ा और सभी पूर्वानुमानों को ध्वस्त करता हुआ लुटियन की दिल्ली के तख़्त पर काबिज हो गया दिल्ली की जनता ने हर्षनाद किया अब दिल्ली न्यूयार्क बन जाएगी भ्र्ष्टाचार चोरी बलात्कार आदि बंद हो जायेंगे लेकिन ये क्या हुआ मात्र 49 दिनों में ही अपने तख़्त को छोड़कर भाग खड़े हुए जननेता अरविन्द केजरीवाल वजह विरोधी ताकतों ने विधानसभा में सहयोग नहीं किया जनलोकपाल बिल पास नहीं होने दिया अब मुख्यमंत्री होने से काम नहीं चलेगा दिल्ली वाली लहर पूरे देश में फैलानी होगी इतिहास गवाह है कोई भी सत्ता जितनी आसानी से मिल जाती है उतनी ही आसानी से चली भी जाती है आम आदमी के मुखिया ने शायद इस पर गौर नहीं किया दिल्ली छोड़ कर भारत फतह करने निकल पड़े अपने फ़ौज को लेकर जिस सिपाही ने विरोध किया उसे फ़ौज से बाहर कर दिया जंग हुई लेकिन इस बार इनका मुकाबला किसी किसी मौन सेनापति से नहीं अपितु एक मुखर और सफल जंगजू नरेंद्र मोदी से हुआ जिसने अपनी गौरव गाथा गुजरात के जरिये पूरे भारत में पहुचाने की ठान ली थी चुनाव {जंग } हुआ और जिसकी आशा पहले ही थी आम आदमी के मुखिया का हश्र बहुत बुरा हुआ यहाँ तो न खुदा ही मिला न विसाले सनम जैसा हो गया आधी छोड़ पूरी को धावे आधी मिले न पूरी पावे   दिल्ली का सिंहासन भी गया और भारत विजय की आशा भी धूल-धुसरित हो गयी अब जबकि राजा ही हार गया तो सेना क्या करती जैसा की होता आया है चढ़ते सूरज को सब सलाम करते है  न की डूबते सूरज को सेना के सिपहसालार एक एक करके अरविन्द केजरीवाल के ऊपर चौकड़ी सरदारो के गिरफ्त में होने का आरोप लगाकर अलग होने लगे साजिया इल्मी और गोपीनाथ जैसे वफादार सिपहसालार भी इन्हे छोड़ गए अब कही जाकर अरविन्द के दिल में ख्याल आ रहा की इन्होने दिल्ली छोड़ के कितनी बड़ी गलती कर दी लेकिन अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गयी खेत जनता ने बता दिया उन्हें कैसा सेवक चाहिए ये समय केवल आत्ममंथन का है कि गलती कहा से हुई और इसे कैसे सुधारा जाय क्योकि दिल्ली अपने विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है और आम आदमी के मुखिया के सामने फिर वही सेनापति है देखना दिलचस्प होगा की इस होने वाले चुनाव {जंग }में आम आदमी के मुखिया अपनी पुरानी रणनीति से चलेंगे या फिर इतिहास से सबक लेकर कोई और पत्ता निकालेंगे खुदा न खास्ता इस बार भी पराजय हुई तो केवल कुछ लोगो के सहानभूति के अलावा  कुछ हासिल न हो पायेगा। ……………