मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

चीटी-एक अनमोल कृति

चीटी इश्वर की सबसे अनमोल कल्पना का साक्ष्य रूप जो इस धरा पर सैकणों वर्षो से कार्यरत है निरंतर बिना किसी स्वार्थ के अपने लक्ष्य को भेदती चली आ रही है अनेक विद्वानों का कहना है की इश्वर की सबसे अनमोल कृति मनुष्य है लेकिन मै इस सत्य को पूर्ण रूप से स्वीकार करने में असमर्थ हु क्योकि आज मुझे मनुष्य से भी अनमोल कृति प्राप्त हुई है वह है "चीटी " सोचने में कितना विचित्र लगता है की यह छोटा सा जीव मनुष्य जैसे भीमकाय और शक्तिशाली प्राणी से किस तरह श्रेष्ठ है परन्तु यही सत्य है और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है परोपकार। चीटी जो मनुष्य की तरह अपने भीतर स्वार्थ को नही रखती निरंतर केवल एक दूसरे के लिए हमेशा खाद्य संचय करने में जुटी रहती है और इस प्रयास में कितनो को अपने प्राणों की आहुतिया देनी पड़ती है परन्तु वह बिना स्वार्थ के अपने कार्य को सम्पन्न करने में जुटी रहती है कितना निर्छल है इनका संसार,चीटी एक बहुगुणी और स्रमवान प्राणी मेरे मतानुसार इस धरा पर चीटी जैसा श्रमवान जीव कही भी शायद ही मिल जाय,अथक मेहनत विष्वास और पूर्ण लगन से मेहनत करने वाली जीव चीटी । आज जबकि मनुष्य हर प्रकार के ईश्वर विरोधी कार्यो में लींन है जिसे हमारे मानव समुदाय के कुछ प्राणी अपने ऊपर के दोषों को नज़रंदाज करके ये कहते है की"भइया कलियुग है इस युग में ऐसे कार्य तो होते रहेगे" लेकिन कोई ये नही सोचता की इस कलियुग को हम सतयुग में कैसे बदल सकते है हम भगवान् राम तो नही पर कुछ उनकी तरह कार्य तो कर ही सकते है ये सब देखकर मुचे चीटिया ही ठीक लगती है जिन्हें कलियुग भी नही हरा सका अजेय चीटिया,समझ में नही आता इस चोटी सी काया में कितनी ताकत है की ये सतियुग में में भी प्रगतिशील थी और आज कलियुग में भी उसी तरह स्वार्थहीन और प्रगतिशील है "क्या मनुष्य चीटी के जितना भी साहसी नही क्या वो एक चीटी से हार गया"यह कहना अब अनुचित न होगा । आज मै मानव और चीटियों को देखकर तुलना करता हु तो मुझे ये नन्ही नन्ही चिटिया ही विशालकाय शरीर वाले इंसानों से कई गुना श्रेष्ठ लगती है सचमुच चिटिया ही आज तक ईश्वर के नियमो का पालन करने में सक्षम रही है ईश्वर की सभी कृतियों को तुलनात्मक ढंग से देखा जाय तो श्रेष्ठता की पदवी मानव समुदाय को नही बल्कि इन चीटियों को दे देना चाहिए आज अगर ईश्वर अपने निवास से कही इस धरा का अवलोकन कर रहा होगा तो उसे कितना दुःख पहुचेगा वह सोचने के लिए विवश हो जाएगा की मेरी यह सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य जिसे मैंने अपने तन मन से निर्माण किया था आज वह धूल-धूसरित होगया जिसे मैंने सदैव अच्छे और धर्म के रस्ते पर चलने का उपदेश दिया वो आज सभी प्रकार के कुकर्मो को किए जा रहा है और अगर यह सोचते हुए उसकी निगाह यदि चीटियों पर पड़ गई तो वह उसे निष्चित ही अपनी अनमोल कृति मान लेगा और अगर एसा हुआ तो मानव समाज एक जहरीला कीड़ा बनके रह जायगा अगर सही समय पर मनुष्य ने इन चीटियों की नक़ल करके अपने को न सुधार तो मानव समाज में प्रलय मच जायगी जिसका जिम्मेदार ख़ुद मानव समाज होगा ।

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